Monday, August 27, 2007

लकी अली...




नही रखता दिलमे कुछ रखता हू जबापर
समज़ेना आपनेभी कभी
कह नहि सकता मै क्या सहता हू छूपाकर
एक ऐसी आदत है मेरी
सभी तो है जिनासे मिलता हू,
सही जो है इनसे कहता हू, जो समझता हू
मैने देख नही रंग दील आया है सिर्फ़ अदा पर,
एक ऐसी चाहत है मेरी
बहरोके ढेरेसे लाया मै दील सजाकर
एक ऐसी सौहबत है मेरी,
सयेमे छाये रहाता हू, आखे बिछये रहाता हू
जिनसे मिलता हू..........

कितनोको देखा है हमने यहां कुछ सिखा है हमने उनसे नया ॥ ओ ओ ओ:


पहिले फ़ुरसद थी, अब हसरत है समाकल
एक ऐसी उलझन है मेरी
खुद चलके रुकता हू जहा जीस जगह्पर
एक ऐसी सरहद है मेरी
कहनेसेभी मै डरता हू
आपने के धूनमे रहता हू,
कर क्या सकता हू, दे सकता हू मै थोडा प्यार यहापर
जीतनी हैसीयत है मेरी
रह जाऊ सबके दील मे दीलको बसाकर
एक ऐसी नियात है मेरी
खोजाएतो मै राजी हू
खोजाऊ तो मै बकी हू, यू समझता हू.....

रस्तेना बदले ना बदला जहां फिर क्यो बदलते कदम है यहां॥ ओ ओ ओ:

Monday, August 20, 2007

Friends...


One day I was wandering on Luna(Two Wheeler) with one of my close friend. We are very much alike in dressing, studies, nature.... She was one year junior to me in college. Still we used to be with each other for long time after college hours.
Any ways coming back to the story, I asked her, "Had you been in my class, do you think we would have been such good friends?" in replay she said, "I think 'No'".... I was a little astonished, I asked her, "Why?" immediately she said, "You cant be friend with those people who can replace you!" Reality, Bitter Truth! Do you think the same?

Thursday, August 16, 2007

Begining of The End

Hi!
I was just trying to copy one of my friends. This is a nice idea. I mean I am just trying to
put my thoughts without hesitation. I don't know whether anyone would like to read it or not.
I'll honestly put my thougths over here that is promise.