Monday, August 27, 2007

लकी अली...




नही रखता दिलमे कुछ रखता हू जबापर
समज़ेना आपनेभी कभी
कह नहि सकता मै क्या सहता हू छूपाकर
एक ऐसी आदत है मेरी
सभी तो है जिनासे मिलता हू,
सही जो है इनसे कहता हू, जो समझता हू
मैने देख नही रंग दील आया है सिर्फ़ अदा पर,
एक ऐसी चाहत है मेरी
बहरोके ढेरेसे लाया मै दील सजाकर
एक ऐसी सौहबत है मेरी,
सयेमे छाये रहाता हू, आखे बिछये रहाता हू
जिनसे मिलता हू..........

कितनोको देखा है हमने यहां कुछ सिखा है हमने उनसे नया ॥ ओ ओ ओ:


पहिले फ़ुरसद थी, अब हसरत है समाकल
एक ऐसी उलझन है मेरी
खुद चलके रुकता हू जहा जीस जगह्पर
एक ऐसी सरहद है मेरी
कहनेसेभी मै डरता हू
आपने के धूनमे रहता हू,
कर क्या सकता हू, दे सकता हू मै थोडा प्यार यहापर
जीतनी हैसीयत है मेरी
रह जाऊ सबके दील मे दीलको बसाकर
एक ऐसी नियात है मेरी
खोजाएतो मै राजी हू
खोजाऊ तो मै बकी हू, यू समझता हू.....

रस्तेना बदले ना बदला जहां फिर क्यो बदलते कदम है यहां॥ ओ ओ ओ:

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